धुआँ ही धुआँ
#repost ना भेजा कोई खत ना चिठ्ठी कोई ये कौनसी धून है तुम्हारी मुझपे छाई हुई ना सो सकूँ सुकून से ,मैं करवट बदलती रही तेरी आहट जो आके सताती रही हथेलियों को मेरे जबसे चूमा है तुमने ये इत्तर की तरहा मेहकने लगी ये कौनसा रंग मुझपे उडाया है तुमने मैं तितलीयों के पंखो सी लगने लगी तेरी बाहों के घेरे में लिपटी थी जबसे मैं शक्कर के जैसी पिघलती रही ये तेरा इष्क है या सावन का पानी मैं फुलो की तरहा बहेकती रही ये लबों की लबों से जो बात गहरी हुई तेरी नशा की मैं जैसे दिवानी हुई ये आँखों के शोलो से जो किया तुने घायल मैं धुआँ ही धुआँ होके सुलगती रही मैं धुआँ ही धुआँ होके सुलगती रही... लिना यादव ०७.०७.२०२०